कुरआन 1:2 (सूरह अल-फातिहा, आयत 2) की विस्तृत व्याख्या
कुरआन 1:2 (सूरह अल-फातिहा, आयत 2) की विस्तृत व्याख्या
الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ
(अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन)
अर्थ: "सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जो सभी जगतों का पालनहार है।"
1. आयत का सामान्य परिचय
यह आयत सूरह अल-फातिहा की दूसरी आयत है, जिसे "उम्मुल किताब" (किताब की माँ) कहा जाता है।
यह अल्लाह की प्रशंसा (हम्द) और उसकी रबूबियत (पालनहार होने की गवाही) पर केंद्रित है।
पूरे कुरआन में "अल्हम्दु लिल्लाह" का उल्लेख कई बार हुआ है, जो इसके महत्व को दर्शाता है।
2. शब्दों की गहरी व्याख्या
(क) "अल्हम्दु" (الْحَمْدُ)
अर्थ: "हर तरह की प्रशंसा, शुक्रिया और गुणगान।"
महत्व:
यह शब्द सिर्फ़ अल्लाह के लिए इस्तेमाल होता है, क्योंकि वही सच्चा प्रशंसा के योग्य है।
इसमें आभार (शुक्र) और तारीफ (मदह) दोनों शामिल हैं।
(ख) "लिल्लाह" (لِلَّهِ)
अर्थ: "केवल अल्लाह के लिए।"
महत्व:
यह तौहीद (एकेश्वरवाद) की पुष्टि करता है।
कोई भी प्रशंसा, इबादत या शुक्र अल्लाह के अलावा किसी और के लिए नहीं हो सकता।
(ग) "रब्बिल आलमीन" (رَبِّ الْعَالَمِينَ)
"रब्ब" (रब):
पालनहार, पोषण करने वाला, संचालक।
अल्लाह ही रोज़ी देता है, हिदायत देता है और ब्रह्मांड को संभालता है।
"आलमीन" (जगतों):
इसमें इंसान, जिन्न, फरिश्ते, जानवर, ग्रह, तारे सभी शामिल हैं।
अल्लाह सिर्फ़ मुसलमानों का नहीं, बल्कि सभी जगतों का रब है।
3. आयत का गहरा संदेश
(क) अल्लाह की प्रशंसा क्यों?
ख़ुदा होने के नाते:
वही हमें बनाता है, पालता है और मौत के बाद जिलाएगा।
नियामतों (आशीर्वादों) के लिए:
सांस, पानी, रोज़ी, सेहत, ईमान सब उसी की देन हैं।
कुदरत (प्रकृति) के संचालन के लिए:
सूरज, चाँद, बारिश, फसलें सब उसी के आदेश से चलती हैं।
(ख) "रब्बिल आलमीन" का महत्व
अल्लाह सिर्फ़ "मेरा" या "हमारा" रब नहीं, बल्कि सभी जीवों, गैलेक्सी और ब्रह्मांड का मालिक है।
इससे संकीर्ण सोच (क़ौमियत, जातिवाद) खत्म होती है।
यह शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराने) से इनकार है।
(ग) इंसान की ज़िम्मेदारी
अगर अल्लाह हमारा रब है, तो:
हमें उसकी इबादत करनी चाहिए।
उसके आदेशों का पालन करना चाहिए।
उसकी नियामतों का शुक्र अदा करना चाहिए।
4. व्यावहारिक जीवन में अनुप्रयोग
(क) रोज़मर्रा की ज़िंदगी में
सुबह उठते ही: "अल्हम्दु लिल्लाह" कहकर अल्लाह का शुक्र अदा करें कि उसने आपको नई ज़िंदगी दी।
खाना खाने के बाद: "अल्हम्दु लिल्लाह" पढ़ें, ताकि रोज़ी की क़दर हो।
मुसीबत में भी: "अल्हम्दु लिल्लाह" कहें, क्योंकि अल्लाह हर हाल में इंसान की परीक्षा लेता है।
(ख) आध्यात्मिक लाभ
गुनाहों की माफी: हदीस में आता है कि "अल्हम्दु लिल्लाह" कहने से नमाज़ के बीच का पाप धुल जाता है। (सही मुस्लिम)
जन्नत में ऊँचा दर्जा: जो लोग हमेशा शुक्र करते हैं, अल्लाह उन्हें जन्नत में विशेष स्थान देगा।
(ग) सामाजिक संदेश
अहंकार खत्म होता है: जब इंसान समझता है कि सारी ताक़त अल्लाह की है, तो वह घमंड नहीं करता।
एकता का पैग़ाम: "रब्बिल आलमीन" याद दिलाता है कि सभी इंसान एक ही अल्लाह की संतान हैं।
5. विद्वानों (उलमा) की राय
(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर
"इस आयत में अल्लाह ने ख़ुद को 'रब्बिल आलमीन' बताया, क्योंकि वही सृष्टि का आदि और अंत है।"
(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली
"जो व्यक्ति 'अल्हम्दु लिल्लाह' को दिल से कहता है, उसका ईमान पूरा हो जाता है।"
(ग) मौलाना मौदूदी
"यह आयत मनुष्य को याद दिलाती है कि उसकी हर नियामत का स्रोत अल्लाह है।"
6. निष्कर्ष
तौहीद की पुष्टि: सारी प्रशंसा सिर्फ़ अल्लाह के लिए है।
शुक्र की अहमियत: हर पल अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए।
विश्व बंधुत्व: अल्लाह सभी जगतों का रब है, इसलिए इंसानों में भेदभाव नहीं होना चाहिए।
दुआ:
"ऐ अल्लाह! हमें हमेशा तेरी प्रशंसा करने और तेरे शुक्रगुज़ार बनने की तौफ़ीक दे। आमीन!"