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Quran - The Audio Recitations

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कुरआन 1:3 (सूरह अल-फातिहा, आयत 3) की विस्तृत व्याख्या

कुरआन 1:3 (सूरह अल-फातिहा, आयत 3) की विस्तृत व्याख्या

 الرَّحْمَـٰنِ الرَّحِيمِ

(अर-रहमानिर-रहीम)
अर्थ: "बड़ा दयावान, अत्यंत कृपाशील।"


1. आयत का सामान्य परिचय

  • यह आयत सूरह अल-फातिहा की तीसरी आयत है जो अल्लाह की दया के गुणों पर केंद्रित है।

  • यह "बिस्मिल्लाह" (1:1) में आए दो नामों (अर-रहमान और अर-रहीम) को दोहराती है, जो इन गुणों के महत्व को दर्शाता है।

  • पूरे कुरआन में अल्लाह की रहमत पर ज़ोर दिया गया है, जो मनुष्यों को आशा और सुकून देती है।


2. शब्दों की गहरी व्याख्या

(क) "अर-रहमान" (الرَّحْمَـٰنِ)

  • अर्थ: "असीम दयालु"

  • विशेषताएँ:

    • यह गुण केवल अल्लाह के लिए प्रयुक्त होता है (कोई इंसान "रहमान" नहीं कहलाया जा सकता)।

    • अल्लाह की दया इस दुनिया में सभी जीवों (मुस्लिम, गैर-मुस्लिम, जानवर, पेड़-पौधे) को समान रूप से मिलती है।

    • उदाहरण: सूरज की रोशनी, हवा, बारिश, स्वास्थ्य, रोज़ी आदि।

(ख) "अर-रहीम" (الرَّحِيمِ)

  • अर्थ: "अत्यंत कृपाशील"

  • विशेषताएँ:

    • यह दया विशेष रूप से ईमान वालों के लिए है (खासकर आख़िरत में)।

    • उदाहरण: गुनाहों की माफी, जन्नत की प्राप्ति, कयामत के दिन रहम।

(ग) दोनों नामों में अंतर

अर-रहमानअर-रहीम
दुनिया में सभी के लिए दयाआख़िरत में विश्वासियों के लिए दया
सामान्य रहमत (हर जीव को मिलती है)विशेष रहमत (सिर्फ़ मोमिनीन के लिए)
उदाहरण: बारिश, हवा, रोज़ीउदाहरण: हिदायत, तौबा की क़ुबूलियत

3. आयत का गहरा संदेश

(क) अल्लाह की दया सर्वव्यापी है

  • अल्लाह सजा देने से पहले माफ़ करता है (कुरआन 7:156)।

  • वह इंसान के छोटे-से-छोटे अच्छे काम को भी बर्बाद नहीं करता (कुरआन 2:286)।

(ख) मनुष्य को आशा रखनी चाहिए

  • चाहे इंसान कितने भी गुनाह कर ले, अल्लाह की रहमत से निराश नहीं होना चाहिए (हदीस में आता है: "अल्लाह की रहमत से केवल काफिर ही निराश होते हैं")।

(ग) दया का व्यावहारिक पाठ

  • जैसे अल्लाह दयालु है, हमें भी दूसरों के साथ रहमदिली से पेश आना चाहिए (पैग़म्बर मुहम्मद ﷺ ने कहा: "जो दूसरों पर दया नहीं करता, अल्लाह उस पर दया नहीं करता")।


4. व्यावहारिक जीवन में अनुप्रयोग

(क) रोज़मर्रा की ज़िंदगी में

  • दुआ में: हमेशा "या रहमान, या रहीम" कहकर दुआ करें, ताकि अल्लाह की रहमत जागृत हो।

  • गुनाहों से डरते हुए भी आशा रखें: अल्लाह की रहमत से कभी निराश न हों।

(ख) सामाजिक संदेश

  • दया फैलाएँ: गरीबों, अनाथों और जरूरतमंदों की मदद करें (कुरआन 2:177)।

  • माफ़ करना सीखें: जैसे अल्लाह माफ़ करता है, वैसे ही हम भी दूसरों को माफ़ करें।

(ग) आध्यात्मिक लाभ

  • अल्लाह का प्यार: जो अल्लाह के इन नामों को याद करता है, अल्लाह उससे प्यार करता है (हदीस)।

  • जन्नत की चाबी: रहमदिल बनने से जन्नत मिलती है (हदीस: "रहम करने वालों पर अर-रहमान रहम करता है")।


5. विद्वानों (उलमा) की राय

(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर

  • "अल्लाह ने अपने दो नाम (अर-रहमान, अर-रहीम) को दोहराया, ताकि बंदे को याद दिलाया जाए कि वह हर हाल में दयालु है।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली

  • "जो व्यक्ति 'अर-रहमानिर-रहीम' को समझकर पढ़ता है, उसका दिल नर्म हो जाता है और वह दूसरों पर दया करने लगता है।"

(ग) मौलाना मौदूदी

  • "यह आयत मनुष्य को सिखाती है कि अल्लाह की दया के बिना कोई भी सफल नहीं हो सकता।"


6. निष्कर्ष

  1. अल्लाह की दया सभी को मिलती है – चाहे वह काफिर हो या मोमिन।

  2. आशा रखो – अल्लाह की रहमत से कभी निराश न हों।

  3. दया फैलाओ – जैसे अल्लाह दयालु है, वैसे ही बनो।

दुआ:
"ऐ अर-रहमान, ऐ अर-रहीम! हमें अपनी रहमत का हिस्सा दे और हमें भी दूसरों पर दया करने वाला बना। आमीन!"