कुरआन 1:4 (सूरह अल-फातिहा, आयत 4) की विस्तृत व्याख्या
कुरआन 1:4 (सूरह अल-फातिहा, आयत 4) की विस्तृत व्याख्या
مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ
(मालिकि यौमिद्दीन)
अर्थ: "बदले के दिन (क़यामत) का मालिक है।"
1. आयत का सामान्य परिचय
यह सूरह अल-फातिहा की चौथी आयत है जो अल्लाह की संप्रभुता और न्याय पर केंद्रित है।
यह "यौमिद्दीन" (प्रलय के दिन) की याद दिलाती है, जब हर इंसान को अपने कर्मों का हिसाब देना होगा।
यह आयत अल्लाह के दो गुणों को उजागर करती है:
मालिक (स्वामी)
दीन (न्याय करने वाला)
2. शब्दों की गहरी व्याख्या
(क) "मालिक" (مَالِكِ)
अर्थ: "सच्चा स्वामी, राजा, अधिपति"
विशेषताएँ:
अल्लाह ही वास्तविक मालिक है - सारी सत्ता और अधिकार उसी के हाथ में है।
इस दुनिया के सभी "मालिक" (राजा, नेता, धनपति) अस्थायी हैं - असली मालिक अल्लाह है।
(ख) "यौमिद्दीन" (يَوْمِ الدِّينِ)
शाब्दिक अर्थ: "बदले/प्रतिफल का दिन"
तफ़सीर में अर्थ: क़यामत का दिन जब:
हर इंसान के कर्मों का हिसाब होगा।
न्याय (इन्साफ़) पूरी तरह से अल्लाह के हाथ में होगा।
कोई सिफारिश या रिश्वत काम नहीं आएगी।
(ग) "दीन" (الدِّينِ) के तीन अर्थ
इन्साफ़ (न्याय) - अल्लाह उस दिन पूरा न्याय करेगा।
जज़ा (प्रतिफल) - हर अच्छे-बुरे काम का बदला मिलेगा।
धर्म (इस्लाम) - सच्चा धर्म सिर्फ़ अल्लाह के आगे झुकना है।
3. आयत का गहरा संदेश
(क) अल्लाह की संप्रभुता
यह आयत बताती है कि:
इस दुनिया में लोग धन, ताकत या पद के मालिक दिखते हैं, लेकिन असली मालिक अल्लाह है।
क़यामत के दिन सारी सत्ता सिर्फ़ अल्लाह के हाथ में होगी (कुरआन 40:16)।
(ख) मृत्यु और पुनरुत्थान पर विश्वास
"यौमिद्दीन" आख़िरत (परलोक) के यक़ीन की याद दिलाता है।
इससे इंसान:
गुनाहों से बचता है (क्योंकि उसे हिसाब देना है)।
नेकी करने की प्रेरणा मिलती है (क्योंकि अच्छे कामों का बदला मिलेगा)।
(ग) न्याय का संतुलन
अल्लाह "अर-रहमान" (दयालु) भी है और "मालिकि यौमिद्दीन" (न्याय करने वाला) भी।
उसकी रहमत से गुनाहगारों को माफ़ी मिल सकती है।
लेकिन उसका इन्साफ़ यह भी बताता है कि बुरे कर्मों की सजा भी है।
4. व्यावहारिक जीवन में अनुप्रयोग
(क) रोज़मर्रा की ज़िंदगी में
ईमानदारी: अगर हम जानते हैं कि अल्लाह हर चीज़ का मालिक है, तो:
धोखाधड़ी, रिश्वत और ग़बन से बचेंगे।
ज़िम्मेदारी:
अगर अल्लाह ने हमें धन दिया है, तो उसे हलाल तरीक़े से खर्च करें।
अगर अधिकार दिया है, तो इन्साफ़ के साथ उपयोग करें।
(ख) आध्यात्मिक लाभ
तक़वा (ईश्वर-भय): "मालिकि यौमिद्दीन" पढ़ते हुए दिल में अल्लाह का डर पैदा होता है।
गुनाहों से तौबा: जो यह आयत समझकर पढ़ता है, वह पापों से माफ़ी माँगने लगता है।
(ग) सामाजिक संदेश
भ्रष्टाचार खत्म होता है: अगर हर व्यक्ति यक़ीन करे कि उसे क़यामत के दिन जवाब देना है, तो समाज में भ्रष्टाचार कम होगा।
सामाजिक न्याय: यह आयत अमीर-गरीब, शक्तिशाली-कमज़ोर सभी को याद दिलाती है कि अंतिम न्याय अल्लाह करेगा।
5. विद्वानों (उलमा) की राय
(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर
"यह आयत बताती है कि क़यामत के दिन अल्लाह के सिवा कोई मालिक नहीं होगा - न कोई बादशाह, न कोई नेता।"
(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली
"जो 'मालिकि यौमिद्दीन' को दिल से समझता है, वह दुनिया के झूठे दिखावे से बच जाता है।"
(ग) मौलाना मौदूदी
"यह आयत मनुष्य को याद दिलाती है कि उसकी हर गतिविधि का हिसाब होगा - इसलिए जीवन को सावधानी से जियो।"
6. निष्कर्ष
अल्लाह ही वास्तविक मालिक है - दुनिया के सभी मालिकाना दावे खोखले हैं।
क़यामत पर विश्वास जीवन को संयमित और नेक बनाता है।
न्याय का भय इंसान को गुनाहों से रोकता है और नेकी की तरफ़ मोड़ता है।
दुआ:
"ऐ अल्लाह! हमें 'मालिकि यौमिद्दीन' का वास्तविक अर्थ समझने की तौफ़ीक दे और क़यामत के दिन हमें अपनी रहमत से निराश न कर। आमीन!"