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Quran - The Audio Recitations

Bless yourself and surroundings with the soulful Recitation Voices of the Holy Quran

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कुरआन 1:5 (सूरह अल-फातिहा, आयत 5) की विस्तृत व्याख्या

कुरआन 1:5 (सूरह अल-फातिहा, आयत 5) की विस्तृत व्याख्या

 إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ

(इय्याका नअबुदु व इय्याका नसतईन)
अर्थ: "हम केवल तुझी की इबादत करते हैं और केवल तुझी से मदद चाहते हैं।"


1. आयत का सामान्य परिचय

  • यह सूरह अल-फातिहा की पाँचवीं आयत है जो इबादत और मदद के लिए अल्लाह की एकता पर केंद्रित है।

  • यह आयत तौहीद (एकेश्वरवाद) का सार है और इस्लामी जीवन-दर्शन की नींव है।

  • इसमें दो मूल सिद्धांत हैं:

    1. इबादत (पूजा) सिर्फ़ अल्लाह के लिए

    2. मदद सिर्फ़ अल्लाह से माँगना


2. शब्दों की गहरी व्याख्या

(क) "इय्याका" (إِيَّاكَ)

  • अर्थ: "केवल तुझी को"

  • विशेषता:

    • अरबी व्याकरण में "इय्याका" शब्द को वाक्य के आरंभ में लाकर अल्लाह पर विशेष ज़ोर दिया गया है।

    • यह शिर्क (अल्लाह के साथ साझीदार ठहराने) से स्पष्ट इनकार है।

(ख) "नअबुदु" (نَعْبُدُ)

  • अर्थ: "हम इबादत करते हैं"

  • इबादत का विस्तृत अर्थ:

    • नमाज़, रोज़ा, हज, दान

    • पूर्ण आज्ञाकारिता और समर्पण

    • जीवन के हर पहलू में अल्लाह के आदेशों का पालन

(ग) "नसतईन" (نَسْتَعِينُ)

  • अर्थ: "हम मदद चाहते हैं"

  • महत्व:

    • इंसान अपनी सारी शक्तियों के बावजूद असहाय है।

    • सच्ची मदद सिर्फ़ अल्लाह से माँगनी चाहिए (न कि मज़ारों, तावीज़ों या ज्योतिषियों से)।


3. आयत का गहरा संदेश

(क) तौहीद (एकेश्वरवाद) की पुष्टि

  • यह आयत "ला इलाहा इल्लल्लाह" का विस्तार है:

    • इबादत सिर्फ़ अल्लाह की (मूर्तियों, संतों, नेताओं की नहीं)।

    • मदद सिर्फ़ अल्लाह से (दुनिया के साधनों से नहीं)।

(ख) इंसान की वास्तविक स्थिति

  • इंसान अल्लाह का बंदा (अब्द) है:

    • उसका काम इबादत करना है।

    • उसकी ज़रूरत अल्लाह की मदद माँगना है।

(ग) व्यावहारिक जीवन का मार्गदर्शन

  • इबादत: सिर्फ़ रीति-रिवाज़ नहीं, बल्कि पूर्ण समर्पण

  • मदद माँगना: हर छोटी-बड़ी ज़रूरत में सिर्फ़ अल्लाह को याद करना।


4. व्यावहारिक जीवन में अनुप्रयोग

(क) रोज़मर्रा की ज़िंदगी में

  1. नमाज़ में: हर रकअत में यह आयत पढ़कर अल्लाह के सामने झुकना

  2. मुसीबतों में: "या अल्लाह! सिर्फ़ तुझसे मदद चाहता हूँ" कहना।

  3. फैसले लेते समय: अल्लाह से हिदायत माँगना (इस्तिखारा की दुआ)।

(ख) आध्यात्मिक लाभ

  • ईमान की मज़बूती: इस आयत को समझने से तौहीद की समझ गहरी होती है।

  • गुनाहों से बचाव: जो सच्चे दिल से "इय्याका नसतईन" कहता है, वह ग़ैर-अल्लाह से मदद नहीं माँगता

(ग) सामाजिक संदेश

  • अंधविश्वास खत्म होता है: तावीज़, जादू, नज़ारों पर भरोसा करना शिर्क है।

  • एकता का पाठ: सभी मुसलमान एक अल्लाह की इबादत करते हैं।


5. विद्वानों (उलमा) की राय

(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर

  • "यह आयत इस्लाम का सार है - अल्लाह के अलावा किसी की इबादत न करो और सिर्फ़ उसी से मदद माँगो।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली

  • "जो 'इय्याका नअबुदु' को समझ लेता है, उसका दिल दुनिया के मिथ्या आकर्षणों से मुक्त हो जाता है।"

(ग) मौलाना मौदूदी

  • "यह आयत मनुष्य को सिखाती है कि उसकी आज़ादी का दायरा सिर्फ़ अल्लाह की इबादत तक है।"


6. निष्कर्ष

  1. इबादत सिर्फ़ अल्लाह के लिए - कोई साझीदार नहीं।

  2. मदद सिर्फ़ अल्लाह से - दुनिया के साधनों से नहीं।

  3. पूर्ण समर्पण - जीवन के हर पहलू में अल्लाह को याद रखना।

दुआ:
"ऐ अल्लाह! हमें सच्चे दिल से सिर्फ़ तेरी इबादत करने और सिर्फ़ तुझसे मदद माँगने की तौफ़ीक दे। आमीन!"