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क़ुरआन 2:10 (सूरह अल-बक़रह आयत 10) का विस्तृत व्याख्या

क़ुरआन 2:10 (सूरह अल-बक़रह आयत 10) का विस्तृत व्याख्या

 आयत का अरबी पाठ:

فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ فَزَادَهُمُ اللَّهُ مَرَضًا ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ

हिंदी अनुवाद:
"उनके दिलों में बीमारी (कुफ़्र, नफ़ाक़ और संदेह) है, फिर अल्लाह ने उनकी बीमारी को और बढ़ा दिया, और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है, उस झूठ के कारण जो वे बोला करते थे।"


विस्तृत व्याख्या:

1. "दिलों में बीमारी" का अर्थ:

  • यहाँ "बीमारी" (मरद) से तात्पर्य आध्यात्मिक और नैतिक बीमारी से है, जैसे:

    • कुफ़्र (अविश्वास): सच्चाई को झुठलाना।

    • नफ़ाक़ (पाखंड): दिखावे के लिए ईमान लाना।

    • संदेह और अहंकार: अल्लाह और उसके रसूल के सन्देश में शक करना।

  • यह बीमारी उन लोगों के दिलों में थी जो मुसलमान होने का दिखावा करते थे, लेकिन अंदर से काफिर या मुनाफिक़ (पाखंडी) थे।

2. "अल्लाह ने उनकी बीमारी बढ़ा दी" का तात्पर्य:

  • यह अल्लाह की सुन्नत (प्राकृतिक नियम) है कि जो लोग सच्चाई को जानबूझकर ठुकराते हैं, अल्लाह उनके दिलों पर मुहर लगा देता है (जैसा कि आयत 2:7 में वर्णित है)।

  • कर्म और परिणाम का सिद्धांत: जब कोई व्यक्ति बार-बार गुनाह और झूठ पर अड़ा रहता है, तो अल्लाह उसे उसी रास्ते पर और आगे बढ़ने देता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक अंधता बढ़ जाती है।

3. "दर्दनाक अज़ाब" की चेतावनी:

  • यह अज़ाब दोनों संसारों में हो सकता है:

    • दुनिया में: मुनाफिक़ों को समाज में अपमान, युद्ध में हार, या आंतरिक अशांति का सामना करना पड़ता है (जैसा कि मदीना के मुनाफिक़ों के साथ हुआ)।

    • आख़िरत में: जहन्नम का गहरा अज़ाब, क्योंकि उन्होंने ईमान के साथ धोखा किया।

4. "झूठ बोलने के कारण" का संदर्भ:

  • यह झूठ निम्नलिखित रूपों में था:

    • अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के बारे में झूठी आरोप लगाना।

    • अपने ईमान के बारे में दिखावा करना (जबकि दिल में कुफ्र था)।

    • मुसलमानों को धोखा देने की योजनाएँ बनाना।


सबक और शिक्षा:

  1. ईमान की ईमानदारी: ईमान सिर्फ़ दिखावे के लिए नहीं, बल्कि दिल की गहराई से होना चाहिए।

  2. सच्चाई का परिणाम: जो लोग सत्य को छुपाते हैं, अल्लाह उनकी गुमराही बढ़ा देता है।

  3. अज़ाब से सावधानी: इस आयत में मुनाफिक़ों के लिए चेतावनी है कि अल्लाह के दंड से बचने का एकमात्र रास्ता तौबा और सच्चा ईमान है।

निष्कर्ष: यह आयत हमें दिल की पवित्रता पर ज़ोर देती है और दिखावे की धार्मिकता से सावधान करती है। अल्लाह हम सभी को सच्चे ईमान की तौफ़ीक़ दे। (आमीन)