कुरआन 2:11 (सूरह अल-बक़रह, आयत 11) का विस्तृत और उत्तम व्याख्या
कुरआन 2:11 (सूरह अल-बक़रह, आयत 11) का विस्तृत और उत्तम व्याख्या
आयत का अरबी पाठ:
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا تُفْسِدُوا فِي الْأَرْضِ قَالُوا إِنَّمَا نَحْنُ مُصْلِحُونَ
हिंदी अनुवाद:
"और जब उनसे कहा जाता है कि धरती में फसाद (बिगाड़) मत फैलाओ, तो वे कहते हैं कि हम तो सिर्फ़ सुधार करने वाले हैं।"
विस्तृत व्याख्या एवं तफ्सीर:
1. आयत का संदर्भ (Context):
यह आयत मुनाफ़िक़ीन (पाखंडियों) के बारे में है, जो दिखावे के लिए मुसलमान बने हुए थे, लेकिन वास्तव में वे इस्लाम और मुसलमानों के लिए खतरा थे। वे अराजकता फैलाते, झूठ बोलते और मुसलमानों के बीच फूट डालते थे। जब उन्हें उनकी गलतियों पर टोका जाता, तो वे अपने आप को "मुस्लिह" (सुधारक) बताकर बचने की कोशिश करते थे।
2. "फसाद फैलाने" का अर्थ:
फसाद (إفساد) का मतलब है समाज में अराजकता, भ्रष्टाचार, अन्याय और अशांति फैलाना। इसमें शामिल है:
धार्मिक फसाद: ईमान को कमज़ोर करना, लोगों को गुमराह करना।
सामाजिक फसाद: झूठी अफवाहें फैलाना, समुदाय में विवाद पैदा करना।
राजनीतिक फसाद: अवज्ञा और विद्रोह को बढ़ावा देना।
3. मुनाफ़िक़ीन का दावा: "हम तो सुधारक हैं!"
ये लोग अपने बुरे कर्मों को छुपाने के लिए झूठे नारे लगाते थे।
उनका तर्क था कि वे "समाज को बेहतर बना रहे हैं," जबकि वास्तव में वे अल्लाह के नियमों के खिलाफ़ काम कर रहे थे।
यह आज भी देखा जा सकता है, जब कुछ लोग बुराई को "प्रगति" या "आज़ादी" का नाम देकर उसे सही ठहराते हैं।
4. इस आयत से सीख (Lessons):
✔ अपने इरादों को शुद्ध रखें: कई बार लोग बुरे काम को अच्छे नाम से करते हैं, लेकिन अल्लाह नियत (इरादे) को देखता है।
✔ सच्चा सुधार क्या है?
सुधार (इस्लाह) वही है जो कुरआन और सुन्नत के अनुसार हो।
जो समाज में अन्याय, अज्ञानता और पाप को बढ़ावा दे, वह सुधार नहीं, बल्कि फसाद है।
✔ मुनाफ़िक़ीन की पहचान:वे शब्दों के खेल से लोगों को धोखा देते हैं।
उनके कर्म और उनके दावे में विरोधाभास होता है।
5. आज के समय में इस आयत की प्रासंगिकता:
आज भी कुछ लोग गलत कामों को "धर्मनिरपेक्षता," "आधुनिकता" या "सुधार" का नाम देकर उन्हें सही ठहराते हैं।
उदाहरण:
अगर कोई हराम (निषिद्ध) चीज़ों को "सामाजिक बदलाव" कहकर बढ़ावा देता है, तो यह फसाद है।
अगर कोई अन्याय के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के बजाय उसे सही ठहराता है, तो यह मुनाफ़िक़ी (पाखंड) है।
निष्कर्ष (Conclusion):
इस आयत में अल्लाह हमें सच्चे सुधार और झूठे सुधार में फर्क करना सिखाता है। एक मुसलमान का काम यह है कि वह कुरआन और हदीस की रोशनी में समाज को सही दिशा दे, न कि अपनी इच्छाओं के अनुसार धर्म को बदलने की कोशिश करे।
"वास्तविक सुधार वही है जो अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) के मार्गदर्शन पर आधारित हो।"
अल्लाह हम सभी को सच्चा ईमान और हक़ बात कहने की ताक़त दे। (आमीन)