कुरआन 2:13 (सूरह अल-बक़रह) - विस्तृत व्याख्या
कुरआन 2:13 (सूरह अल-बक़रह) - विस्तृत व्याख्या
🔹 आयत का अरबी पाठ:
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا كَمَا آمَنَ النَّاسُ قَالُوا أَنُؤْمِنُ كَمَا آمَنَ السُّفَهَاءُ أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ السُّفَهَاءُ وَلَٰكِن لَّا يَعْلَمُونَ
🔹 हिंदी अनुवाद:
"और जब उनसे कहा जाता है कि ईमान लाओ, जैसे (दूसरे) लोग ईमान लाए हैं, तो वे कहते हैं: क्या हम ऐसे ईमान लाएँ, जैसे मूर्खों ने ईमान लाया है? सुन लो! वास्तव में वही मूर्ख हैं, लेकिन उन्हें ज्ञान नहीं है।"
📖 आयत की गहन व्याख्या (Tafseer)
1. संदर्भ (Context)
यह आयत मुनाफ़िक़ीन (पाखंडियों) के बारे में है जो मदीना में मुसलमानों के साथ रहते थे।
वे दिखावे के लिए ईमान लाए थे, लेकिन मन से काफिर थे।
जब उन्हें सच्चे ईमान की दावत दी जाती, तो वे मुसलमानों को "मूर्ख" (सुफ़हा) कहकर उनका मज़ाक उड़ाते थे।
अल्लाह उनकी असलियत बताते हुए कहता है कि असल मूर्ख तो वे खुद हैं।
2. मुख्य बिंदु (Key Points)
🔸 "क्या हम ऐसे ईमान लाएँ, जैसे मूर्खों ने ईमान लाया?"
मुनाफ़िक़ीन सच्चे मोमिनों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें "मूर्ख" कहते थे।
उनका तर्क था कि ईमान लाने वाले लोग भावुक और अज्ञानी हैं, जबकि वे खुद को "समझदार" समझते थे।
आज के संदर्भ में:
कुछ लोग धर्म को "अंधविश्वास" कहकर उसका मज़ाक उड़ाते हैं।
वे इल्म (ज्ञान) और तकनीक के घमंड में ईमान से दूर हो जाते हैं।
🔸 "वास्तव में वही मूर्ख हैं, लेकिन उन्हें ज्ञान नहीं है"
अल्लाह उनके दावे को पलट देता है और बताता है कि असली मूर्ख वे हैं जो सच्चाई को नहीं पहचानते।
क्यों?
क्योंकि उन्हें अल्लाह, आख़िरत और हक़ीक़त का ज्ञान नहीं था।
उनकी "समझदारी" सिर्फ़ दुनियावी चालाकी थी, न कि हक़ीक़ी बुद्धिमानी।
3. सबक (Lessons from the Ayah)
✅ 1. ईमान को "मूर्खता" न समझें
आज कुछ लोग सोचते हैं कि धर्म मानना पिछड़ापन है, लेकिन हक़ीक़त यह है कि ईमान ही सच्ची समझदारी है।
कुरआन 2:269 में अल्लाह कहता है:
"जिसे ज्ञान दिया गया, उसे वास्तव में बहुत भलाई दी गई। और सीखता है वही जिसमें अक्ल है।"
✅ 2. अहंकार (घमंड) से बचें
मुनाफ़िक़ीन अपनी चालाकी पर घमंड करते थे, लेकिन वही उनकी गुमराही का कारण बना।
हदीस:
"जिसके दिल में राई के बराबर अहंकार होगा, वह जन्नत में नहीं जाएगा।" (मुस्लिम)
✅ 3. सच्चा ज्ञान क्या है?
सच्चा ज्ञान वह है जो अल्लाह और आख़िरत की पहचान कराए।
कुरआन 39:9 में अल्लाह पूछता है:
"क्या जो जानता है और जो नहीं जानता, दोनों बराबर हो सकते हैं?"
4. आज के युग में प्रासंगिकता
🔄 1. आधुनिकता बनाम ईमान
आज कुछ लोग विज्ञान और तर्क के नाम पर ईमान को छोड़ देते हैं, लेकिन विज्ञान और इस्लाम में कोई विरोधाभास नहीं।
उदाहरण:
कुरआन ने भ्रूण विकास, ब्रह्मांड का विस्तार आदि चमत्कारिक तथ्य 1400 साल पहले बता दिए थे।
🔄 2. सोशल मीडिया और धर्म का मज़ाक
आज कुछ लोग मीम्स और मज़ाक बनाकर ईमान को हल्का बनाते हैं, लेकिन यह मुनाफ़िक़ीन जैसा व्यवहार है।
🔄 3. दुनिया की चालाकी बनाम आख़िरत की समझ
कुछ लोग धोखा देकर पैसा कमाना "स्मार्टनेस" समझते हैं, लेकिन असली मूर्ख वे हैं जो आख़िरत को भूल जाते हैं।
🎯 निष्कर्ष (Conclusion)
इस आयत से हमें तीन मुख्य सीख मिलती है:
ईमान को कभी कम न समझें – यही सच्ची बुद्धिमानी है।
अहंकार से बचें – यह इंसान को अंधा बना देता है।
सच्चा ज्ञान वही है जो अल्लाह की पहचान कराए।
दुआ:
"ऐ अल्लाह! हमें दुनिया की गुमराही से बचा और सच्ची समझदारी दे।" (आमीन)