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Quran - The Audio Recitations

Bless yourself and surroundings with the soulful Recitation Voices of the Holy Quran

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कुरआन 2:2 (सूरह अल-बक़रा, आयत 2) की विस्तृत व्याख्या

कुरआन 2:2 (सूरह अल-बक़रा, आयत 2) की विस्तृत व्याख्या

 ذَٰلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ ۛ فِيهِ ۛ هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ

(ज़ालिकल किताबु ला रैबा फ़ीहि हुदल लिल मुत्तक़ीन)

अर्थ: "यह वह किताब है जिसमें कोई संदेह नहीं, यह डर रखने वालों के लिए मार्गदर्शन है।"


1. आयत का सामान्य परिचय

  • यह आयत सूरह अल-बक़रा की दूसरी आयत है जो कुरआन की सच्चाई और उसके मार्गदर्शन के बारे में बताती है।

  • यह आयत तीन मूल बातों पर प्रकाश डालती है:

    1. कुरआन की सच्चाई (ला रैबा फ़ीहि)

    2. मार्गदर्शन का स्रोत (हुदन)

    3. मार्गदर्शन पाने वाले (अल-मुत्तक़ीन)


2. शब्दों की गहरी व्याख्या

(क) "ज़ालिकल किताब" (ذَٰلِكَ الْكِتَابُ)

  • अर्थ: "यह वह किताब"

  • विशेषताएँ:

    • "ज़ालिक" (वह) शब्द दूर की वस्तु के लिए प्रयुक्त होता है, जो कुरआन की महानता और उच्च स्थान को दर्शाता है।

    • "अल-किताब" से तात्पर्य लौह-ए-महफूज़ (स्वर्ग में संरक्षित मूल किताब) से है।

(ख) "ला रैबा फ़ीहि" (لَا رَيْبَ فِيهِ)

  • अर्थ: "जिसमें कोई संदेह नहीं"

  • महत्व:

    • कुरआन संदेह से परे है - इसकी हर आयत सच्ची है।

    • यह चुनौती देता है कि कोई भी इस जैसी किताब नहीं ला सकता (कुरआन 2:23)।

(ग) "हुदल लिल मुत्तक़ीन" (هُدًى لِّلْمُتَّقِينَ)

  • अर्थ: "डर रखने वालों के लिए मार्गदर्शन"

  • "मुत्तक़ीन" कौन हैं?

    • वे लोग जो:

      • अल्लाह से डरते हैं

      • बुराइयों से बचते हैं

      • नेक कर्म करते हैं

      • अल्लाह पर भरोसा रखते हैं


3. आयत का गहरा संदेश

(क) कुरआन की सच्चाई

  • कुरआन अल्लाह का वचन है, न कि मनुष्य की रचना।

  • यह हर युग के लिए मार्गदर्शन है और कभी बदलेगा नहीं

(ख) मार्गदर्शन किसके लिए?

  • कुरआन का मार्गदर्शन सभी के लिए है, लेकिन सिर्फ़ मुत्तक़ीन ही इसे समझ पाते हैं।

  • मुत्तक़ीन बनने के लिए:

    1. ईमान लाओ - अल्लाह और उसके रसूल पर विश्वास करो।

    2. अमल करो - कुरआन की शिक्षाओं पर चलो।

    3. दूसरों को सिखाओ - अच्छाई का प्रचार करो।

(ग) "मुत्तक़ी" की विशेषताएँ

  1. ईमान में मजबूत - हर हाल में अल्लाह पर भरोसा।

  2. नमाज़ का पाबंद - समय पर नमाज़ अदा करना।

  3. दान देने वाला - गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करना।

  4. आख़िरत पर यक़ीन - मौत के बाद के जीवन पर विश्वास।


4. व्यावहारिक जीवन में अनुप्रयोग

(क) रोज़मर्रा की ज़िंदगी में

  1. कुरआन पढ़ें और समझें - रोज़ थोड़ा समय निकालकर कुरआन की तिलावत करें।

  2. अमल करें - कुरआन की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारें।

  3. दूसरों को बताएँ - कुरआन का ज्ञान दूसरों तक पहुँचाएँ।

(ख) आध्यात्मिक लाभ

  • दिल को सुकून - कुरआन पढ़ने से दिल को शांति मिलती है।

  • गुनाहों से माफ़ी - कुरआन की शिक्षाओं पर चलने से गुनाह माफ़ होते हैं।

  • जन्नत की राह - कुरआन का मार्गदर्शन जन्नत तक ले जाता है।

(ग) सामाजिक संदेश

  • एकता - कुरआन सभी मुसलमानों को एक सूत्र में बाँधता है।

  • शांति - कुरआन की शिक्षाएँ समाज में शांति लाती हैं।

  • न्याय - कुरआन न्याय और इंसाफ़ की शिक्षा देता है।


5. विद्वानों (उलमा) की राय

(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर

  • "यह आयत कुरआन की सच्चाई और उसके मार्गदर्शन की गवाही देती है।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली

  • "कुरआन का मार्गदर्शन सिर्फ़ वही पा सकता है जो अल्लाह से डरता है।"

(ग) मौलाना मौदूदी

  • "कुरआन हमें सीधा रास्ता दिखाता है, बशर्ते हम उसे मानने के लिए तैयार हों।"


6. निष्कर्ष

  1. कुरआन अल्लाह की किताब है - इसमें कोई संदेह नहीं।

  2. मार्गदर्शन सिर्फ़ मुत्तक़ीन के लिए - अल्लाह से डरने वालों के लिए।

  3. अमल करो - कुरआन की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारो।

दुआ:
"ऐ अल्लाह! हमें कुरआन का सच्चा समझने वाला और उस पर अमल करने वाला बना। आमीन!"