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Quran - The Audio Recitations

Bless yourself and surroundings with the soulful Recitation Voices of the Holy Quran

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कुरआन 2:3 (सूरह अल-बक़रा, आयत 3) की पूर्ण एवं विस्तृत व्याख्या

कुरआन 2:3 (सूरह अल-बक़रा, आयत 3) की पूर्ण एवं विस्तृत व्याख्या

 الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنفِقُونَ

(अल्लज़ीना यू'मिनूना बिल-ग़ैबि व युक़ीमूना-स्सलाता व मिम्मा रज़क़नाहुम युन्फिक़ून)

अर्थ: "जो ग़ैब (अदृश्य) पर ईमान रखते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से खर्च करते हैं।"


1. आयत का सामान्य परिचय एवं संदर्भ

  • यह आयत मुत्तक़ीन (ईश्वर से डरने वालों) की विशेषताओं का वर्णन करती है जिनका उल्लेख पिछली आयत (2:2) में किया गया था।

  • इसमें तीन मूल स्तंभों पर प्रकाश डाला गया है:

    1. ग़ैब पर ईमान (अदृश्य सत्यों में विश्वास)

    2. नमाज़ की स्थापना (नियमित एवं सही तरीके से नमाज़ पढ़ना)

    3. माल का व्यय (अल्लाह के मार्ग में दान देना)


2. शब्दार्थ एवं भाषिक विश्लेषण

(क) "यू'मिनूना बिल-ग़ैब" (ईमान बिल-ग़ैब)

  • ग़ैब का अर्थ: वह सब कुछ जो मानवीय इंद्रियों की पहुँच से परे है।

  • इसमें शामिल हैं:

    • अल्लाह का अस्तित्व

    • फरिश्ते

    • आख़िरत (परलोक)

    • क़ज़ा-ओ-क़द्र (भाग्य)

    • पैग़म्बरों का संदेश

(ख) "युक़ीमूना-स्सलात" (नमाज़ की स्थापना)

  • नमाज़ क़ायम करने का तात्पर्य:

    • नियत समय पर पाँचों नमाज़ें पढ़ना

    • पूर्ण एकाग्रता (खुशू) के साथ

    • सभी फ़र्ज़, वाजिब एवं सुन्नतों का पालन

(ग) "मिम्मा रज़क़नाहुम युन्फिक़ून" (रोज़ी में से खर्च करना)

  • इसके अंतर्गत आता है:

    • ज़कात (अनिवार्य दान)

    • सदक़ा (ऐच्छिक दान)

    • परिवार एवं समाज की ज़रूरतों पर खर्च


3. आयत का गहन विश्लेषण एवं तफ़सीर

(क) ग़ैब पर ईमान का महत्व

  1. ईमान की पहली शर्त: "ग़ैब" पर विश्वास के बिना ईमान अधूरा है।

  2. वैज्ञानिक युग में प्रासंगिकता: आधुनिक विज्ञान भी बहुत से "अदृश्य" तत्वों (जैसे गुरुत्वाकर्षण, क्वांटम कण) को मानता है।

  3. पैग़म्बर इब्राहीम का उदाहरण: जिन्होंने तारों, चाँद और सूरज को देखकर अल्लाह की पहचान की (कुरआन 6:75-79)।

(ख) नमाज़ की वास्तविकता

  • शाब्दिक अर्थ: "सिला" (संपर्क) - अल्लाह से जुड़ने का साधन।

  • प्रभाव:

    • व्यक्तिगत स्तर: गुनाहों से रोकती है (कुरआन 29:45)

    • सामाजिक स्तर: समय अनुशासन एवं एकता सिखाती है

(ग) माल खर्च करने की दार्शनिकता

  • अल्लाह की ओर से परीक्षा: धन वास्तव में अल्लाह की अमानत है।

  • आर्थिक संतुलन: ज़कात समाज में आर्थिक विषमता दूर करती है।

  • मनोवैज्ञानिक लाभ: लोभ एवं संचय की प्रवृत्ति से मुक्ति।


4. व्यावहारिक जीवन में अनुप्रयोग

(क) आधुनिक संदर्भ में ग़ैब पर ईमान

  • विज्ञान एवं धर्म का सामंजस्य: बिग बैंग सिद्धांत और कुरआन की आयतें (21:30)

  • चिकित्सा क्षेत्र: प्राण (रूह) का अस्तित्व जो चिकित्सा विज्ञान से परे है

(ख) नमाज़ को प्रभावी ढंग से कैसे क़ायम करें?

  1. समय का ध्यान: मोबाइल ऐप्स द्वारा नमाज़ के समय की याद दिलाना

  2. मस्जिद में जमाअत: सामूहिक पाठ से एकता की भावना

  3. ध्यान के तरीके: नमाज़ में पढ़ी जाने वाली आयतों के अर्थ पर विचार

(ग) वित्तीय प्रबंधन के इस्लामी सिद्धांत

  • आय का वितरण: 2.5% ज़कात + 5-10% सदक़ा

  • प्राथमिकताएँ:

    1. निकट संबंधी

    2. पड़ोसी

    3. समाज के ज़रूरतमंद


5. विद्वानों के विचार एवं तफ़सीर

(क) इब्ने कसीर की व्याख्या

  • "ग़ैब पर ईमान सच्चे मोमिन की पहचान है जैसे आख़िरत, जन्नत-दोज़ख़ पर विश्वास।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली का दृष्टिकोण

  • "नमाज़ ईमान का फल है और ईमान की कसौटी भी।"

(ग) मौलाना मौदूदी का विश्लेषण

  • "इस्लामी अर्थव्यवस्था की नींव ज़कात पर टिकी है जो समाजवाद और पूँजीवाद के बीच संतुलन स्थापित करती है।"


6. सामाजिक प्रभाव एवं वर्तमान संदर्भ

(क) आधुनिक चुनौतियाँ एवं समाधान

  1. भौतिकवादी दृष्टिकोण: ग़ैब पर ईमान कमज़ोर होना

    • समाधान: कुरआनिक आयतों का वैज्ञानिक विश्लेषण

  2. नमाज़ में लापरवाही:

    • समाधान: मस्जिदों में ज्ञानवर्धक कार्यक्रम

  3. कंजूसी की प्रवृत्ति:

    • समाधान: ज़कात फंड्स का पारदर्शी प्रबंधन

(ख) आँकड़े एवं तथ्य

  • ज़कात का आर्थिक प्रभाव:

    • इंडोनेशिया में ज़कात द्वारा 10 लाख लोगों को रोज़गार


7. निष्कर्ष: एक आदर्श मुसलमान का चित्रण

  1. आस्था: अदृश्य सत्यों पर दृढ़ विश्वास

  2. अनुशासन: नियमित रूप से नमाज़ के माध्यम से अल्लाह से संपर्क

  3. उदारता: धन को अल्लाह की अमानत समझकर उचित खर्च

प्रार्थना:
"ऐ अल्लाह! हमें सच्चे मुत्तक़ीन बना जो ग़ैब पर ईमान रखें, नियमित नमाज़ पढ़ें और अपनी रोज़ी में से खर्च करें। आमीन!"