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कुरआन 2:4 (सूरह अल-बक़रा, आयत 4) की विस्तृत व्याख्या

कुरआन 2:4 (सूरह अल-बक़रा, आयत 4) की विस्तृत व्याख्या

 وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنزِلَ مِن قَبْلِكَ وَبِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ

(वल्लज़ीना यू'मिनूना बिमा उन्जिला इलैका व मा उन्जिला मिन क़ब्लिका व बिल-आखिरति हुम यूक़िनून)

अर्थ: "और जो लोग उस (किताब) पर ईमान लाते हैं जो आप पर उतारी गई और जो आपसे पहले उतारी गईं, और वे आख़िरत पर पूरे यक़ीन रखते हैं।"


1. आयत का संदर्भ एवं महत्व

  • यह आयत मुत्तक़ीन (ईश्वर-भय रखने वालों) की विशेषताओं को जारी रखती है।

  • यह तीन नए गुणों का वर्णन करती है:

    1. पैग़म्बर मुहम्मद (ﷺ) पर उतारी गई किताब (कुरआन) पर ईमान

    2. पिछली आसमानी किताबों (तौरात, ज़बूर, इंजील) पर ईमान

    3. आख़िरत (परलोक) पर दृढ़ विश्वास


2. शब्दार्थ एवं भाषिक विश्लेषण

(क) "यू'मिनूना बिमा उन्जिला इलैका"

  • अर्थ: "जो तुम्हारी ओर उतारा गया उस पर ईमान लाते हैं"

  • तात्पर्य:

    • कुरआन पर पूर्ण विश्वास

    • पैग़म्बर (ﷺ) की सुन्नत को मानना

(ख) "व मा उन्जिला मिन क़ब्लिका"

  • अर्थ: "और जो तुमसे पहले उतारा गया"

  • समावेश:

    • तौरात (मूसा अलैहिस्सलाम पर)

    • ज़बूर (दाऊद अलैहिस्सलाम पर)

    • इंजील (ईसा अलैहिस्सलाम पर)

(ग) "व बिल-आखिरति हुम यूक़िनून"

  • अर्थ: "और वे आख़िरत पर यक़ीन रखते हैं"

  • आख़िरत के घटक:

    • मृत्यु के बाद जीवन

    • क़यामत का दिन

    • जन्नत और जहन्नम

    • हिसाब-किताब


3. गहन व्याख्या एवं तफ़सीर

(क) सभी आसमानी किताबों पर ईमान

  1. इस्लामी अक़ीदा: मुसलमान सभी पैग़म्बरों और उन पर उतारी गई किताबों पर ईमान रखते हैं।

  2. वर्तमान संदर्भ:

    • यहूदी और ईसाई "अहले-किताब" हैं

    • उनकी मूल किताबों का सम्मान करना चाहिए

  3. सावधानी:

    • वर्तमान बाइबिल और तौरात में मानवीय परिवर्तन हो चुके हैं

    • केवल वही बातें मान्य जो कुरआन से मेल खाती हों

(ख) आख़िरत पर यक़ीन का प्रभाव

  • व्यक्तिगत जीवन पर:

    • गुनाहों से बचाव

    • नेक कर्मों में वृद्धि

  • सामाजिक प्रभाव:

    • ईमानदारी बढ़ती है

    • भ्रष्टाचार कम होता है

    • समाज में न्याय स्थापित होता है

(ग) ऐतिहासिक संदर्भ

  • मक्की जीवन: काफिर आख़िरत पर सवाल उठाते थे (कुरआन 32:10)

  • मदीना काल: मुसलमानों ने आख़िरत पर यक़ीन के बल पर कठिनाइयाँ झेलीं


4. व्यावहारिक अनुप्रयोग

(क) आधुनिक मुसलमान के लिए सबक

  1. कुरआन से संबंध:

    • रोज़ाना तिलावत

    • तफ़सीर का अध्ययन

  2. अहले-किताब के साथ व्यवहार:

    • सम्मानपूर्ण संवाद

    • साझा मूल्यों पर बातचीत

  3. आख़िरत की याद:

    • मृत्यु को याद रखना

    • प्रतिदिन जन्नत की दुआ करना

(ख) सामाजिक सुधार में भूमिका

  • शिक्षा प्रणाली: आख़िरत के विश्वास को पाठ्यक्रम में शामिल करना

  • आर्थिक व्यवस्था: ज़कात प्रणाली को मजबूत करना

  • कानून व्यवस्था: ईमानदारी को प्रोत्साहन


5. विद्वानों के विचार

(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर

  • "सच्चा मोमिन वह है जो सभी आसमानी किताबों के मूल संदेश को माने।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली

  • "आख़िरत पर यक़ीन ईमान का फल है और ईमान की कसौटी भी।"

(ग) मौलाना मौदूदी

  • "कुरआन ने पिछली किताबों की पुष्टि की, परन्तु उनमें हुए परिवर्तनों को सुधारा।"


6. वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता

(क) बहु-धार्मिक समाज में सहअस्तित्व

  • अंतर्धार्मिक संवाद को बढ़ावा

  • साझा नैतिक मूल्यों पर ज़ोर

(ख) वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • पुनरुत्थान का विज्ञान: DNA शोध से जीवन के पुनर्निर्माण की संभावना

  • ब्रह्माण्ड विज्ञान: बिग क्रंच सिद्धांत और क़यामत की समानता

(ग) युवाओं के लिए संदेश

  • आख़िरत पर विश्वास भौतिकवादी प्रभाव से बचाता है

  • कुरआनिक ज्ञान आधुनिक शिक्षा के साथ समन्वय


7. निष्कर्ष: एक संपूर्ण मुसलमान का चित्रण

  1. विश्वास का स्तंभ: कुरआन और पिछली किताबों पर ईमान

  2. जीवन का उद्देश्य: आख़िरत की तैयारी

  3. सामाजिक दायित्व: सच्चाई और न्याय की स्थापना

प्रार्थना:
"ऐ अल्लाह! हमें सच्चा ईमान अता फरमा, सभी आसमानी किताबों पर विश्वास की तौफ़ीक़ दे, और आख़िरत पर अटल यक़ीन प्रदान कर। आमीन!"