Skip to main content

Quran - The Audio Recitations

Bless yourself and surroundings with the soulful Recitation Voices of the Holy Quran

3736668544917597669

कुरआन 2:6 (सूरह अल-बक़रा, आयत 6) की विस्तृत व्याख्या

कुरआन 2:6 (सूरह अल-बक़रा, आयत 6) की विस्तृत व्याख्या

 إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ سَوَآءٌ عَلَيْهِمْ ءَأَنذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ

(इन्नल्लज़ीना कफरू सवाउं अलैहिम अ-अन्ज़रतहुम अम लम तुन्ज़िरहुम ला यू'मिनून)

अर्थ: "निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया, उनके लिए समान है चाहे आप उन्हें चेतावनी दें या न दें, वे ईमान नहीं लाएँगे।"


1. आयत का संदर्भ एवं महत्व

  • यह आयत काफिरों की मानसिकता का वर्णन करती है जो पिछली आयतों में वर्णित मुत्तक़ीन (ईश्वर-भय रखने वालों) के विपरीत है।

  • इसमें तीन मूल बातें बताई गई हैं:

    1. कुफ्र (इनकार) की स्थिति

    2. चेतावनी (इन्ज़ार) का प्रभाव

    3. अविश्वास की जड़ता


2. शब्दार्थ एवं भाषिक विश्लेषण

(क) "इन्नल्लज़ीना कफरू" (जिन्होंने इनकार किया)

  • कुफ्र का अर्थ:

    • सच्चाई को जानबूझकर ठुकराना

    • अहंकारवश सत्य को न मानना

  • ऐतिहासिक संदर्भ:

    • मक्का के काफिर जो पैग़म्बर (ﷺ) के संदेश को झुठलाते थे

(ख) "सवाउं अलैहिम" (उनके लिए समान)

  • तात्पर्य:

    • चेतावनी देने या न देने से कोई फर्क नहीं पड़ता

    • उनकी जिद और हठधर्मिता

(ग) "ला यू'मिनून" (वे ईमान नहीं लाएँगे)

  • मनोवैज्ञानिक विश्लेषण:

    • दिलों पर मुहर लग चुकी है (कुरआन 2:7 में वर्णित)

    • स्वेच्छा से अंधत्व चुनना


3. गहन व्याख्या एवं तफ़सीर

(क) काफिरों की मानसिकता

  1. जानबूझकर इनकार:

    • फिरऔन की तरह जिसने मूसा (अलैहिस्सलाम) के चमत्कार देखकर भी इनकार किया

  2. अहंकार की भावना:

    • अबू जहल जैसे लोग जो हैसियत के मद में अड़े रहे

(ख) चेतावनी का उद्देश्य

  • हुज्जत तमाम होना:

    • ताकि क़यामत के दिन कोई यह न कह सके कि "हमें चेतावनी नहीं मिली"

  • समाज का संतुलन:

    • सत्य और असत्य अलग-अलग हो जाएँ

(ग) अल्लाह की सुन्नत (प्रकृति)

  • इरादे की अहमियत:

    • अल्लाह उसे ही मार्गदर्शन देता है जो सच्चाई चाहता है

  • इंसानी स्वतंत्रता:

    • चुनने का अधिकार है, परिणाम भुगतने का भी


4. व्यावहारिक अनुप्रयोग

(क) दावत-ए-दीन के तरीके

  1. समझदारी से चुनाव:

    • कुरआन 16:125 के अनुसार "हिक्मत (बुद्धिमत्ता)" से दावत दें

  2. समय का ध्यान:

    • कुछ लोगों को "मौसम-ए-खिज़ान" (अस्वीकार का समय) होता है

(ख) आधुनिक संदर्भ में

  • गैर-मुस्लिमों के साथ व्यवहार:

    • सम्मानपूर्वक संवाद

    • जबरन थोपने से बचें

  • सोशल मीडिया उपयोग:

    • विवेकपूर्ण तरीके से इस्लाम का संदेश फैलाएँ

(ग) आत्म-सुधार के लिए सबक

  • अहंकार से बचें:

    • कहीं हम भी किसी सच्चाई को स्वीकार न करने वालों में तो नहीं?

  • दुआ की अहमियत:

    • "या मुक़ल्लिबल कुलूब..." (ऐ दिलों को पलटने वाले...) की दुआ करें


5. विद्वानों के विचार

(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर

  • "यह आयत उन लोगों के बारे में है जिनके दिलों पर मुहर लग चुकी है।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली

  • "सत्य को ठुकराने वाला व्यक्ति अपने अहंकार में अंधा हो जाता है।"

(ग) मौलाना मौदूदी

  • "इस्लामी दावत का उद्देश्य सिर्फ़ ईमान लाना नहीं, बल्कि हुज्जत पूरी करना भी है।"


6. वर्तमान चुनौतियाँ एवं समाधान

(क) प्रमुख चुनौतियाँ

  1. धर्मनिरपेक्षता का दबाव: इस्लाम को निजी मामला बताना

  2. मीडिया का पूर्वाग्रह: इस्लाम को गलत ढंग से पेश करना

  3. युवाओं का भ्रम: संस्कृति और धर्म में अंतर न समझना

(ख) समाधान के उपाय

  1. ज्ञानार्जन:

    • कुरआन और सुन्नत की गहरी समझ

  2. व्यावहारिक उदाहरण:

    • इस्लामी आचरण से प्रभावित करना

  3. रचनात्मक तरीके:

    • कला, साहित्य और तकनीक के माध्यम से संदेश फैलाना


7. निष्कर्ष: संतुलित दृष्टिकोण

  1. दावत का फर्ज़: हर हाल में सत्य पहुँचाना

  2. परिणाम की चिंता न करें: हमारा काम सिर्फ़ पहुँचाना है

  3. अल्लाह पर भरोसा: मार्गदर्शन देने वाला वही है

प्रार्थना:
"ऐ अल्लाह! हमें सच्चाई को समझने और स्वीकार करने की तौफ़ीक़ दे। जिनके दिल बंद हो चुके हैं, उन्हें भी हिदायत दे। आमीन!"