कुरआन 2:7 (सूरह अल-बक़रा, आयत 7) की विस्तृत व्याख्या
कुरआन 2:7 (सूरह अल-बक़रा, आयत 7) की विस्तृत व्याख्या
خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ وَعَلَىٰ سَمْعِهِمْ ۖ وَعَلَىٰٓ أَبْصَـٰرِهِمْ غِشَـٰوَةٌۭ ۖ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌۭ
(ख़तमल्लाहु अला क़ुलूबिहिम व अला समइहिम व अला अब्सारिहिम ग़िशावतुव व लहुम अज़ाबुन अज़ीम)
अर्थ: "अल्लाह ने उनके दिलों और कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आँखों पर पर्दा पड़ गया है। उनके लिए भारी यातना है।"
1. आयत का संदर्भ एवं महत्व
यह आयत काफिरों की आध्यात्मिक स्थिति का वर्णन करती है जिसकी शुरुआत पिछली आयत (2:6) में हुई थी।
इसमें चार मुख्य बिंदु हैं:
दिलों पर मुहर (क़ुलूब पर ख़तम)
सुनने की शक्ति पर प्रभाव
देखने की क्षमता पर पर्दा
भयानक यातना की चेतावनी
2. शब्दार्थ एवं भाषिक विश्लेषण
(क) "ख़तमल्लाह" (अल्लाह ने मुहर लगा दी)
ख़तम का अर्थ:
सील कर देना
अंतिम रूप दे देना
तफ़सीरी संदर्भ:
यह मुहर उनके अपने ही कर्मों के परिणामस्वरूप (कुरआन 4:155)
(ख) "क़ुलूब, सम' और अब्सार" (दिल, कान और आँखें)
तीनों का संयुक्त प्रभाव:
दिल: समझने की क्षमता खो देना
कान: सुनकर भी न सुनना
आँखें: देखकर भी न देखना
(ग) "ग़िशावत" (पर्दा)
प्रकार:
आध्यात्मिक अंधत्व
सत्य को पहचानने में असमर्थता
(घ) "अज़ाबुन अज़ीम" (भारी यातना)
प्रकार:
दुनियावी यातना (जैसे बदला)
आख़िरत की यातना (जहन्नम)
3. गहन व्याख्या एवं तफ़सीर
(क) मुहर लगने की प्रक्रिया
स्वैच्छिक प्रारंभ:
व्यक्ति स्वयं बार-बार सत्य को ठुकराता है
दैवीय निर्णय:
अल्लाह उसकी इस जिद को स्थायी बना देता है
उदाहरण:
फिरऔन जिसने 9 निशानियाँ देखकर भी इनकार किया
(ख) आध्यात्मिक इंद्रियों का निष्क्रिय होना
इंद्रियाँ | भौतिक कार्य | आध्यात्मिक प्रभाव |
---|---|---|
दिल (क़ल्ब) | रक्त संचार | सत्य को समझने की क्षमता |
कान (सम') | ध्वनि ग्रहण | हिदायत सुनने की इच्छा |
आँखें (बसर) | प्रकाश ग्रहण | अल्लाह की निशानियाँ देखना |
(ग) यातना का स्वरूप
दुनियावी उदाहरण:
क़ौमे नूह, आद, समूद का विनाश
आख़िरत की यातना:
जहन्नम की भयानक गर्मी
मनोवैज्ञानिक यातना (पछतावा)
4. व्यावहारिक अनुप्रयोग
(क) आत्म-सुधार के लिए सबक
दिल की हिफ़ाज़त:
गुनाहों से बचें (गुनाह दिल को कठोर बनाते हैं)
सुनने की आदत:
कुरआन की तिलावत नियमित सुनें
देखने का नज़रिया:
प्रकृति में अल्लाह की निशानियाँ ढूँढें
(ख) समाज के प्रति दायित्व
दावत-ए-दीन:
कोशिश जारी रखें भले ही अस्वीकार हो
चेतावनी:
अल्लाह के अज़ाब से डराएँ
संतुलन:
निराश न हों, अल्लाह जिसे चाहे हिदायत दे
(ग) आधुनिक संदर्भ में
मीडिया का प्रभाव:
अश्लीलता और हिंसा से दिलों पर मुहर लगती है
शिक्षा प्रणाली:
भौतिकवादी शिक्षा आध्यात्मिक अंधत्व बढ़ाती है
उपाय:
इस्लामिक शिक्षा को प्राथमिकता दें
5. विद्वानों के विचार
(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर
"मुहर लगना अल्लाह का न्याय है उन पर जिन्होंने स्वयं अविश्वास चुना।"
(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली
"दिल का कठोर होना सबसे बड़ा आध्यात्मिक रोग है।"
(ग) मौलाना मौदूदी
"यह आयत मनुष्य की नैतिक जिम्मेदारी को रेखांकित करती है।"
6. वर्तमान चुनौतियाँ एवं समाधान
(क) प्रमुख चुनौतियाँ
नास्तिकता का बढ़ता प्रभाव
धार्मिक उदासीनता
सांसारिकता में डूबे रहना
(ख) समाधान के उपाय
रोज़ाना दुआ:
"या मुक़ल्लिबल कुलूब..." (ऐ दिलों को पलटने वाले...)
कुरआनिक ज्ञान:
दैनिक तिलावत और अध्ययन
सही संगत:
अच्छे लोगों की सोहबत
7. निष्कर्ष: चेतावनी और सीख
अल्लाह की निशानियों को नज़रअंदाज़ न करें
दिल को जीवित रखें - ज़िक्र और इस्तिग़फार से
अज़ाब से डरें और तौबा करें
प्रार्थना:
"ऐ अल्लाह! हमारे दिलों को अपने ज़िक्र में लगा दे। हमारे कानों को सत्य सुनने वाला बना। हमारी आँखों से अज्ञानता का पर्दा हटा दे। आमीन!"