Skip to main content

Quran - The Audio Recitations

Bless yourself and surroundings with the soulful Recitation Voices of the Holy Quran

3736668544917597669

कुरआन 2:9 (सूरह अल-बक़रा, आयत 9) की विस्तृत व्याख्या

कुरआन 2:9 (सूरह अल-बक़रा, आयत 9) की विस्तृत व्याख्या

 يُخَـٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوا۟ وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ

(युखादिऊनल्लाह वल्लज़ीना आमनू व मा यख्दिऊना इल्ला अंफुसहुम व मा यश्ऊरून)

अर्थ: "वे अल्लाह और ईमान वालों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, जबकि वे सिर्फ़ अपने आप को ही धोखा दे रहे हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं है।"


1. आयत का संदर्भ एवं महत्व

  • यह आयत मुनाफ़िक़ीन (पाखंडियों) के व्यवहार को उजागर करती है, जिसकी शुरुआत पिछली आयत (2:8) में हुई थी।

  • इसमें तीन मूलभूत सत्य प्रस्तुत किए गए हैं:

    1. धोखे की प्रकृति (अल्लाह और मोमिनीन को धोखा देना)

    2. वास्तविक शिकार (स्वयं को धोखा देना)

    3. अज्ञानता की स्थिति (अपनी ग़लती का एहसास न होना)


2. शब्दार्थ एवं भाषिक विश्लेषण

(क) "युखादिऊन" (धोखा देते हैं)

  • अरबी मूल: "खदअ" - छल, धोखा, भ्रमित करना

  • तफ़सीरी अर्थ:

    • बाहरी तौर पर ईमानदार दिखना

    • आंतरिक रूप से कपटपूर्ण इरादे रखना

(ख) "अल्लाह वल्लज़ीना आमनू" (अल्लाह और ईमान वालों को)

  • धोखे का दोहरा लक्ष्य:

    1. अल्लाह को: अपने कर्मों से छल करना

    2. मोमिनीन को: समाज में विश्वासघात करना

(ग) "व मा यख्दिऊना इल्ला अंफुसहुम" (सिर्फ़ अपने आप को धोखा)

  • मनोवैज्ञानिक सत्य:

    • धोखेबाज़ अंततः स्वयं के लिए जाल बुनता है

    • कुरआन 4:142 में इसी तथ्य को दोहराया गया

(घ) "व मा यश्ऊरून" (और उन्हें एहसास नहीं)

  • अज्ञानता की स्थिति:

    • आत्म-विश्लेषण की कमी

    • अपने पतन का भान न होना


3. गहन व्याख्या एवं तफ़सीर

(क) धोखे का स्वरूप

स्तरधोखे का प्रकारउदाहरण
बौद्धिकअल्लाह को मूर्ख बनाने की कोशिशगुप्त पाप करके छिपाना
सामाजिकमुसलमानों के बीच विश्वासघातजासूसी करना, षड्यंत्र रचना
आध्यात्मिकस्वयं को धोखा देनादिखावे की इबादत करना

(ख) ऐतिहासिक उदाहरण

  1. अब्दुल्लाह इब्न उबय:

    • मदीना का प्रमुख मुनाफ़िक़

    • बनू क़ैनुक़ा की घेराबंदी में विश्वासघात

  2. आधुनिक उदाहरण:

    • राजनीतिक नेता जो धर्म का इस्तेमाल सत्ता के लिए करते हैं

    • सोशल मीडिया पर धार्मिक दिखावा करने वाले

(ग) मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

  • संज्ञानात्मक विसंगति:

    • कथनी और करनी में अंतर का तनाव

    • आत्म-छवि को बनाए रखने का प्रयास

  • आत्म-धोखे के चरण:

    1. छोटे समझौते करना

    2. नैतिक सीमाएँ धुंधली करना

    3. पूर्ण पाखंड में डूब जाना


4. व्यावहारिक अनुप्रयोग

(क) आत्म-सुधार के लिए सबक

  1. नियत (इरादे) की जाँच:

    • क्या मेरे अमल सिर्फ़ अल्लाह के लिए हैं?

  2. गोपनीय आचरण:

    • अकेले में भी शरिया का पालन

  3. आत्म-मंथन:

    • रोज़ाना मुहासबा (आत्म-जाँच)

(ख) समाज में पहचानने के संकेत

  • मुनाफ़िक़ीन के लक्षण:

    • बातों में अतिशयोक्ति

    • वादे पूरे न करना

    • गुप्त रूप से बुराई फैलाना

  • सावधानी के उपाय:

    • हदीस के अनुसार "तीन बार वादा तोड़ने वाले" से सावधान

(ग) शैक्षिक समाधान

  1. ईमानी शिक्षा:

    • बच्चों को सिखाएँ कि "अल्लाह हर चीज़ देख रहा है"

  2. चरित्र निर्माण:

    • इस्लामी नैतिकता पर पाठ्यक्रम

  3. सामुदायिक जागरूकता:

    • मस्जिदों में नफ़ाक़ के ख़तरों पर खुत्बा


5. विद्वानों के विचार

(क) इब्ने कसीर की तफ़सीर

  • "मुनाफ़िक़ का धोखा उसकी अपनी आत्मा के लिए सबसे बड़ा घात है।"

(ख) इमाम अल-ग़ज़ाली

  • "आत्म-धोखा सभी आध्यात्मिक बीमारियों की जड़ है।"

(ग) मौलाना मौदूदी

  • "आधुनिक समाज में नफ़ाक़ के नए-नए रूप सामने आए हैं जिन्हें पहचानना आवश्यक है।"


6. वर्तमान संदर्भ में चुनौतियाँ

(क) डिजिटल युग में पाखंड

  • सोशल मीडिया दिखावा:

    • धार्मिक पोस्ट डालकर लाइक्स बटोरना

    • वास्तविक जीवन में अमल न करना

  • वर्चुअल पहचान:

    • ऑनलाइन धार्मिक, ऑफ़लाइन अधार्मिक

(ख) राजनीतिक पाखंड

  • वोट बैंक राजनीति:

    • धर्म का इस्तेमाल सत्ता पाने के लिए

    • चुनाव जीतने के बाद वादे भूल जाना

(ग) आर्थिक पाखंड

  • हलाल उद्योग में धोखाधड़ी:

    • सिर्फ़ लेबल लगाकर मुनाफ़ा कमाना

    • वास्तविक इस्लामिक मानकों का उल्लंघन


7. निष्कर्ष: सच्चाई की राह

  1. ईमान की शुद्धता सर्वोपरि है

  2. अल्लाह को धोखा देना असंभव - वह सब कुछ जानता है

  3. आत्म-जागरूकता ही बचाव का मार्ग है

प्रार्थना:
"ऐ अल्लाह! हमें पाखंड से बचाए और सच्चे ईमान की तौफ़ीक़ दे। हमारे दिलों को अपने ज़िक्र में लगा दे। आमीन!"